काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान पटना में ‘नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में भारतीय ज्ञान परम्परा’ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पूरी शिक्षा व्यवस्था में सुधार और पुनर्गठन का प्रस्ताव करती है: प्रो. जयदेव मिश्र
पटना :11.08.2024
काशी प्रसाद जायसवाल शोध संस्थान पटना द्वारा ‘नई शिक्षा नीति के परिपेक्ष में भारतीय ज्ञान परम्परा’ विषय पर एक व्याख्यान रविवार को पटना में आयोजित किया गया। संस्थान की निदेशक, कुमारी ललिता ने स्वागत संबोधन किया। लक्षपति प्रसाद पटेल, शोध सहायक-सह-सहायक निदेशक द्वारा पुष्पगुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत किया गया।
मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) रेखा कुमारी, निदेशक, उच्च शिक्षा, शिक्षा विभाग, बिहार सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति में दिये गये प्रावधानों तथा प्रोत्साहन इत्यादि के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गयी। जाने माने इतिहासकार एवं शिक्षा शास्त्री प्रो. जयदेव मिश्र, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व, पटना विश्वविद्यालय, पटना द्वारा इस विषय पर व्याख्यान दिया गया। प्रो. जयदेव मिश्र ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पूरी शिक्षा व्यवस्था में सुधार और पुनर्गठन का प्रस्ताव करती है, साथ ही इसे प्राचीन भारतीय परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों की विरासत की नींव पर भी इसे समृद्ध भी बनाया जा सके। इसी नीति में भारत के ज्ञान को परिभाषित करते हुये उल्लिखित है कि भारत के ज्ञान में प्राचीन भारत से प्राप्त ज्ञान और आधुनिक भारत और इसकी सफलताओं और चुनौतियों में इसके योगदान के साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य पर्यावरण आदि के संबंध में भारत की भविष्य की आकांक्षाओं का एक स्पष्ट भाव शामिल होगा। इसमें सम्पूर्ण शिक्षा का समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने और इसे पुर्नगठित कराने की आवश्यकता एवं गुणवता पूर्ण शिक्षा के समावेश की बात करती है। यह शिक्षा नीति भारतीय ज्ञान परम्परा संस्कृति कला के ज्ञान को व्यक्तिव निर्माण के लिए उतना ही आवश्यक मानती है, जितना विज्ञान एवं तकनिकी ज्ञान को। अतः यह नीति अपने आप में अनेक विचारों नये दृष्टिकोणों कलात्मक रचनात्मक ज्ञान एवं सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली को समाहित की हुयी है। इस निति में दिये हुये तथ्यों को अमल में लाने के लिये सनातन, ज्ञान, परम्परा, प्रथा, विचार एवं मूल्यों को नवचारित ज्ञान के साथ एकीकृत करना होगा। प्राचीन शिक्षा संबंधी धारणाओं एवं संस्थाओं के सदगुणों को भी अपनाना होगा। इसके कारण ही भारत विश्वस्तरीय ज्ञान के लिए प्रसिद्ध रहा है। शैक्षिणक संस्थाओं में प्राचीनकाल में अधिगम का आर्दश महौल यह था जो लिखने की इच्छा पैदा करता था और इस ज्ञान को उपयोग में लाने का अवसर देता था। यह अधिगम ही अंतरिक स्व के अंवेषण और परीक्षण के अवसर देता था। शैक्षणिक चिन्तन के क्षेत्र में कई प्रसिद्ध शिक्षा साहित्यों ने योगदान दिया है वे नैतिक जीवन और राष्ट्र निर्माण से जुड़ी थी। भारतीय ज्ञान परम्परा को मुख्य आख्यान/विवरण के साथ जोड़ कर बताया जाना चाहिये। किसी भी विषय परचर्चा के पहले यदि हम उस क्षेत्र में कोई भारतीय उपलब्धी है तो उसे जोड़कर प्रस्तुत करना उतम होगा। इसके साथ ही भारतीय ज्ञान और इसके विभिन्न पहलुओं के बारे में रूची उत्पन्न करने और इसे सतत बनाये रखने की आवश्यकता है। केवल निष्पक्ष और वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर ही हम भारतीय विरासत के उचित परिपेक्ष को समझ सकते है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. (डॉ.) कामेश्वर प्रसाद, पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना ने किया। इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) सुनीता शर्मा, प्रो. (डॉ.) पी. एन. तिवारी, डॉ. सुदीप नयन, कार्यापालक निदेशक, बिहार विरासत विकास समिति, पटना, अनेक गणमान्य शिक्षाविद् एवं विद्वतजन अतिथि उपस्थित हुये। संजीव कुमार सिन्हा, सहायक निदेशक ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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