श्रृंगार करना कमज़ोर होने का प्रतीक नहीं: डॉ. प्रिया रानी
पंडौल : 11:03:2024
सोमवार को छठा 'सरिसब सैटरडे क्लब व्याख्यानमाला' सरिसब में श्री श्रुतिकर झा के आवास पर आयोजित किया गया। इस व्याख्यानमाला का विषय "मिथिला में पसाहिन परम्परा" था। डॉ. प्रिया रानी उक्त विषय की वक्ता थी । कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध लेखिका श्रीमती मोहिनी झा ने की और मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. सुनीता झा उपस्थित रहीं। डॉ. प्रिया ने अपने वक्तव्य में कहा कि *पसाहिन परम्परा मिथिला की महिलाओं का गौरव है। सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयोजनों के दौरान परिवार की वृद्ध महिलाओं के द्वारा लड़कियों को पसाहिन करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। पसाहिन कुँवारी और विवाहिता दोनों करती हैं। कुँवारी लड़कियाँ जब पसाहिन करती हैं तो तीन रंग का उपयोग करती हैं। पहला, सफ़ेद रंग जो शीतलता का प्रतीक है, दूसरा, पीला रंग जो गुरू या कहें गुरुत्व का प्रतीक है और तीसरा रंग जो नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के उपक्रम को दर्शाता है। ये तीन रंग प्रकृति के सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण का भी प्रतीक हैं। विवाहिता में उक्त तीन रंग के अतिरिक्त प्रेम और सुहाग कल्याण का प्रतीक लाल रंग जुड़ जाता है। पसाहिन करने में जिन सामग्रियों का उपयोग किया जाता है वह औषधीय दृष्टिकोण से भी हितकारी है। लेकिन विडम्बना यह है कि आधुनिकीकरण और सौन्दर्य के बाज़ारीकरण के प्रभाव से यह परम्परा धीरे-धीरे सिकुड़ती जा रही है। हमें अपने परम्पराओं के पीछे के तत्त्वार्थ और वैज्ञानिकता को समझना होगा।*
कार्यक्रम अध्यक्ष और मुख्य अतिथि ने पसाहिन परम्परा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने की कृतज्ञता को लेकर विचार रखा। अंत में कार्यक्रम और व्याख्यान के प्रति धन्यवाद् ज्ञापित करते हुए श्री अमल कुमार झा ने उक्त व्याख्यानमाला की काफ़ी सराहना की ; साथ ही पसाहिन के वैदिक परम्परा से जुड़े होने का विचार प्रकट किया। मंच सचालन मनीष कुमार त्रिगुणायत ने किया। इस कार्यक्रम में डॉ. अजीत मिश्र, श्री श्रुतिकर झा, श्री विक्की मंडल, डॉ. अनुराग मिश्र, श्री भवेश झा, श्री कलानाथ झा, श्री आलोक नाथ मिश्र एवं अन्य श्रोतागण उपस्थित थे।
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