न्यूज़ डेस्क : मधुबनी
01:08:2023
राजद जिला प्रवक्ता इंद्रजीत राय ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि महागठबंधन सरकार के जाति आधारित सर्वे से प्रामाणिक, विश्वसनीय और वैज्ञानिक आँकड़े प्राप्त होंगे। इससे अतिपिछड़े, पिछड़े तथा सभी वर्गों के गरीबों को सर्वाधिक लाभ प्राप्त होगा। जातीय गणना आर्थिक न्याय की दिशा में बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम होगा। उदाहरण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 11310 बड़े अधिकारियों में से 8000 ओबीसी,एससी और एसटी जातियों से होने चाहिए, लेकिन हक़ीक़त यह है, कि इनकी संख्या केवल 3000 है। 'स्टार्टअप यूनिकार्न' में से 70 फ़ीसदी की स्थापना एससी-एसटी जातियों के द्वारा की जानी चाहिए, लेकिन इनमें ऐसा कहीं नहीं है। या इन जातियों में से भारत सरकार में 225 संयुक्त सचिव और सचिव होने चाहिए, लेकिन अभी इसमें केवल 68 हैं। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की 50 कम्पनियों में से 30 इन उत्पीड़ित जातियों में से होने चाहिए,लेकिन इनमें से कोई नहीं है। दूसरी ओर मनरेगा योजना में 154 मिलियन मज़दूरों में से 80% ओबीसी एससी और एसटी हैं अथवा मैला ढोने वाले सभी 60 हज़ार भारतीय दलित या आदिवासी हैं। 44 हज़ार सरकारी सफ़ाई कर्मचारियों में से 75 % इन्हीं समुदायों में से हैं। इस तरह की जाति के प्रतिनिधित्व की भारी असमानता महज़ संयोग नहीं है, इसके समर्थन में अक़सर यह तर्क दिया जाता है, कि किसी भी क्षेत्र में व्यावसायिक सफलता के लिए शिक्षा और योग्यता की ज़रूरत होती है, जिसमें जाति की कोई भूमिका नहीं है। यह तर्क हास्यास्पद है कि सभी 'योग्यता' जाति के आधार पर केवल 30% आब़ादी के लिए हैं, यदि शिक्षा सफलता के लिए एक सीढ़ी है, तो यह 70% उत्पीड़ित जातियों को उपलब्ध नहीं है। हमारी माँग है कि केंद्र सरकार भी बिहार के तर्ज पर जातीय गणना करवाए। OBC प्रधानमंत्री होने का झूठा दंभ भरने वाले देश की बहुसंख्यक पिछड़ी और गरीब आबादी की जातीय गणना क्यों नहीं कराना चाहते? जाति गणना बिहार की जनता का सामाजिक आकांक्षा है जिसे राजनीतिक तिकड़म करने वाले लोग जाति सर्वे को अपरोक्ष रूप से रोकने की खतरनाक साजिश कर रहे थे माननीय उच्च न्यायालय ने दूषित मानसिकता वाले लोगों की याचिका को निरस्त कर जाति गणना का मार्ग प्रशस्त किया है।
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