न्यूज़ डेस्क : मधुबनी
27:07:2023
गुरुवार को प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा में 'जखन-तखन' व्याख्यानमाला का सातवां व्याख्यान 'असूर्यम्पश्या' सहायक प्राध्यापिका एवं साहित्यकार डा बिभा कुमारी ने दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अमीर अली खान ने की।
डा बिभा कुमारी ने मिथिला में नारी विमर्श को रेखांकित करते हुए कहा कि- "यहां के कुलीन वंशीय नारियों पर अधिक विमर्श हुआ है। असूर्यम्पश्या शब्द का पहला प्रयोग पाणिनी ने किया था। वैदिक काल में नारियों का उपनयन संस्कार होता था, वे वेदाध्यन करती थीं और समाज में उन्मुक्तता था। शिक्षा के कारण पर्दा प्रथा नहीं था, किंतु उत्तर वैदिक काल आते-आते सामाजिक संरचनाएं बदली और सामाजिक नियमों में कठोरता आ गई। नारी शिक्षा पर प्रतिबंध लगा। आधुनिक परिपेक्ष्य में मिथिला की नारियां पूर्णतः पुरुषों पर आश्रित हो गई। पढ़ाई-लिखाई से लेकर के आना-जाना, नौकरी करना आदि में भी ये पूर्णतः आश्रित ही दिखती हैं। मिथिला में शिक्षा का विकास तो हुआ है, किंतु सोच अभी भी परंपरावादी है। आज आवश्यकता है, उस परंपरावादी सोच से आगे आने की। सोच बदलेगी तो व्यवस्थाएं स्वतः ही बदलने लगेगी। असूर्यम्पश्या की बात राजे-रजवाड़े के लिए अधिक उपयुक्त है। आज आवश्यकता है, सूर्यम्पश्या की। समय के साथ चलने के लिए परंपरावादी सोच से आगे आना होगा तब ही नारियां समाज के साथ चल पाएगी।" वैदिक काल से लेकर आज तक के नारियों पर उन्होंने अपना विचार रखा।
विषय प्रवेश पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ अयोध्या नाथ झा, आगत अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष डॉ खान, कार्यक्रम संयोजन एवं धन्यवाद ज्ञापन साहित्यकार विभूति आनंद ने किया।
इस मौक़े पर डा विद्यानाथ झा, डा अवनींद्र कुमार झा, डा भक्ति नाथ झा, डा मित्र नाथ झा, डा अभिलाषा, डा सुखदेव राउत, डा सत्येंद्र कुमार झा, डा प्रवीण कुमार, डा जमील हसन अंसारी, डा मनीष कुमार, डा सुनीता झा, डा सुनीता कुमारी, डा अमृता चौधरी, डा प्रतिभा किरण सहित विश्वविद्यालय के दर्जनों शिक्षाकर्मी, शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
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