पुरातत्व भूषण की उपाधि से सम्मानित हुए ल०ना०मि०वि०वि० के युवा पुराविद् श्री मुरारी कुमार झा।
25 एवं 26 मार्च को स्काउट एंड गाइड्स परिसर, बुद्ध मार्ग, छज्जूबाग, पटना में आयोजित कला, संस्कृति और साहित्य के राष्ट्रीय महोत्सव 'चंद्रगुप्त साहित्य महोत्सव' में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग के पुरातत्व विषय में शोध कार्य कर रहे युवा पुराविद् सह शोधार्थी श्री मुरारी कुमार झा को धरोहर संरक्षण के लिए पूर्व राज्यसभा सांसद सर्व श्री आर० के० सिन्हा, डॉ साकेत सहाय(मुख्य प्रबंधक राजभाषा), प्रख्यात कवि गजेंद्र सोलंकी, श्री शंभु शिखर, रुचि चतुर्वेदी एवं आराधना प्रसाद के हाथों 'पुरातत्व भूषण सम्मान-2023' प्रदान किया गया। इस सम्मान के लिए श्री झा के नाम की अनुशंसा संस्कार भारती के श्री वेद प्रकाश ने की थी।
श्री झा पुरातत्व के क्षेत्र में खोज कार्य करने हेतु 'मुरारी कुमार झा(पुरातत्व)' नाम से देश दुनिया में प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अब तक करीब 400 से 500 पुरास्थलों एवं ऐतिहासिक गांवों का भ्रमण किया है, जिसमें कतिपय ऐसे पुरास्थल शामिल हैं, जो अभी तक प्रकाश में नहीं आया था। चूंकि इन्होंने इन पुरास्थलों का भ्रमण अपने साइकिल से किया है, इसीलिए इनकी ये यात्राएं अधिक महत्वपूर्ण है।
15 फरवरी 1994 ई० को दरभंगा जिला के बेनीपुर प्रखंड अंतर्गत आने वाले लवानी गांव(बिहार, भारत) में एक मध्यमवर्गीय मैथिल ब्राह्मण परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता का नाम श्री चंद्र किशोर झा और माता का नाम श्रीमती आशा देवी है। इनके पिताजी एक साधारण किसान हैं। पांच भाई-बहनों में ये दूसरे नंबर पर आते हैं। इनका लालन-पालन और पढ़ाई लिखाई नानी के गांव से संपन्न हुआ।
23 अक्टूबर 1995 ई० को ये पहली बार दरभंगा जिला के बहादुरपुर प्रखंड अंतर्गत आने वाले देकुली(देवकुली प्राचीन नाम) गांव अपने नाना-नानी के पास मां के साथ आए और देकुली में ही रह गए। इनका प्रारंभिक शिक्षा गांव के आंगनबाड़ी केंद्र से प्रारंभ होकर राजकीय मध्य विद्यालय देकुली से वर्ग 01 से 08 तक, जिले के ही ललितेश्वर मधुसूदन उच्च विद्यालय, आनंदपुर से 09वीं और 10वीं(2007-09), +2 ML एकेडमी, उच्च विद्यालय से इंटरमीडिएट(2009-11) कला में, एम०आर०एस० महाविद्यालय, आनंदपुर से स्नातक(2011-14) इतिहास प्रतिष्ठा में तथा प्राचीन भारतीय इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, कामेश्वर नगर, दरभंगा से पुरातत्व विषय में स्नातकोत्तर(PG 2015-17) पूर्ण हुआ। और वर्तमान समय में
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय से ही Ph.D. उपाधि हेतु पुरातत्व विषय से शोध कार्य कर रहे हैं।
पीजी के दौरान ही 02 दिसंबर 2015 को तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ मदन मोहन मिश्र, शिक्षक डॉ अयोध्या नाथ झा और कर्मचारी श्री कैलाश प्रसाद के समक्ष प्राचीन इतिहास विभाग(मोतीमहल परिसर) से ही प्राप्त हुए 1341ई० के 'मोती महल स्तंभ लेख' के ऐतिहासिक खोज के साथ ही इन्होंने पुरातत्व के दुनिया में अपना पहला कदम रखा। किंतु आगे की खोज जारी रखने हेतु इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती के रूप में साधन और संसाधन का अभाव था। चूंकि नवीन खोज करना इनका प्रथम पसंद था, इसीलिए तत्काल इन्होंने भ्रमण हेतु अपने साइकिल को ही साधन के रूप में उपयोग किया। साइकिल से ज्यादा दूर जाने में हो रहे परेशानियों को देखते हुए मोटर-साइकिल खरीदने का मन बनाए, किंतु ना संसाधन हुआ और ना ही मोटरसाइकिल ली गई। धीरे-धीरे साइकिल चलाना इनकी आदत बन गई।
अभी भी ये साइकिल से ही पुरास्थलों को खोजने हेतु दूर-दूर तक जाते हैं। 01दिन में इनके द्वारा तय की गई सबसे अधिकतम दूरी है, 202 किलोमीटर। दरभंगा के आनंदपुर से विदा होकर 4घंटे पुरास्थल(गिरिजा स्थान फुलहर) पर कार्य करने के उपरांत कुल 13 घंटा में पुनः आनंदपुर आ गए थे, यानी कि 202 किमी की दूरी अपने साइकिल से 9 घंटे में तय किए। ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के स्थलों एवं गांवों को खोजने एवं भ्रमण के लिए ये अभी तक दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली, पटना, गया, नालंदा, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, सहरसा, सुपौल और मधेपुरा जिले के लगभग 400 से 500 पुरास्थलों का भ्रमण कर चुके हैं। इससे संबंधित इनके करीब दर्जन भर आलेख प्रकाशित हैं।
इन्होंने साइकिल से अभी तक कुल दूरी लगभग 01.25 लाख किलोमीटर तय किया है। अभी भी ये अपने साइकिल से साल के अक्टूबर महीना से अप्रैल महीना(07 महीना) तक घूमते रहते हैं। इनका कहना है "जीवन में निरंतरता, लगन, एकाग्रता, सहनशीलता और बुद्धिमता सबसे आवश्यक है।"
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