रिपोर्ट : उदय कुमार झा
मधुबनी : 12:11:2022
साहित्य में नाट्य परम्परा का इतिहास अति प्राचीन है । साहित्य के दो अंगों - दृश्य एवं श्रव्य - काव्य में नाटक दृश्यकाव्य के अन्तर्गत आता है । आचार्य भरत ने अपने महान ग्रन्थ "नाट्यशास्त्र" में नाटक की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है । दृश्यकाव्य की यह विशेषता है कि वह अपना प्रभाव मनुष्य के मानस पटल पर शीघ्र अंकित कर देती है । यही कारण है कि विश्व के हर कोने में दृश्यकाव्य किसी न किसी रूप में विद्यमान है ।
वर्त्तमान युग में लोगों की ज़िन्दगी में ज्यादा भाग-दौड़ रहने के कारण मानसिक तनाव व्याप्त होता जा रहा है । मोबाइल आ जाने के बाद आज के युवा उसी पर अपना मनोरंजन ढूँढ़ लेते हैं । किन्तु, अपनी पारंपरिक सांस्कृतिक सम्पदा को अक्षुण्ण रखने के लिए भी युवावर्ग कहीं-कहीं प्रयासरत दिखता है ।
नाटक के मंचन में बहुत सारी चीजों की जरूरत पड़ती है और बहुत से पात्रों के साथ ही समय की आवश्यकता भी होती है । किन्तु, भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी के बीच भी मिथिलांचल में कुछ जगहों के युवा आज भी नाटक मंचन की परम्परा को जीवित रखते हुए आज के बच्चों में भी नाटक देखने की रुचि बनाए रखने में कामयाब हैं और इसी में एक स्थान है "श्री श्री 108 महावीर स्थान नाट्य कला परिषद" सरिसब-पाही का । इसके द्वारा 1968 ई.से लगातार नाटक का मंचन किया जाता रहा है । हिन्दी और मैथिली नाटकों का मंचन यहाँ हर वर्ष होता आ रहा है । इस नाट्य कला परिषद से जुड़े लोग प्रति वर्ष छठ के अवसर पर नाटक का आयोजन करते हैं । छठ के महान पर्व है और दूर-दूर से लोग छुट्टी लेकर पर्व मनाने घर आते हैं । इस अवसर पर उनके साथ जो बच्चे आते हैं, वे भी अपनी परम्परागत नाट्य कला से परिचित होने लगते हैं और उनमें अपने रिश्तेदारों को नाटक खेलते देखकर एक अजीब सा उत्साह छा जाता है । इसी मनोवृत्ति को देखते हुए सरिसब-पाही में हर वर्ष छठ के अवसर पर नाटक का मंचन होता है । इस वर्ष भी छठ के दूसरे अर्घ्य के दिन महान मैथिली नाटक 'काठक लोक' का मंचन किया गया जो काफी सराहा गया ।
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