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Wednesday, 11 May 2022

एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम से एनीमिया के ख़िलाफ़ मुहिम में मिलेगी गति

 एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम से एनीमिया के ख़िलाफ़ मुहिम में मिलेगी गति



-ज़िलें के विभिन्न क्षेत्रों में स्वास्थ्य कर्मियों को किया जा रहा है प्रशिक्षित:

-खून में आयरन की कमी होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास हो जाता है अवरुद्ध

-एनीमिया की रोकथाम के लिए निःशुल्क दी जाती है दवाएं

-सप्ताह में दो ख़ुराक दिलाएगी आपके बच्चे को खून की कमी से निज़ात:


समस्तीपुर , 10 मई ।

नवजात शिशुओं के शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध होने में एनीमिया सबसे बड़ा कारक होता है। वहीं किशोरियों एवं माताओं में कार्य करने की क्षमता में भी कमी आ जाती है। इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय पोषण अभियान के अंतर्गत ‘एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम की शुरुआत की गयी है। देश के सभी राज्यों में इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम को संचालित किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत विभिन्न आयु वर्ग के समूहों को चिह्नित कर उन्हें एनीमिया से मुक्त करने की पहल की जा रही है। जिसको लेकर ज़िले के सभी प्रखंड में एमओआईसी, आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी सेविकाओं एवं एएनएम को प्रशिक्षित करने का कार्य शुरू किया गया है। 


-खून में आयरन की कमी होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास हो जाता है अवरुद्ध: केयर इंडिया

केयर इंडिया के डीटीओ (ऑन) अविकल्प मिश्रा ने बताया कि इस अभियान के तहत विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों, किशोर, किशोरियों, महिलाएं एवं गर्भवती महिलाओं को लक्षित किया गया है। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य ज़िले के निवासियों को एनीमिया जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव करना है। साथ ही इस कार्यक्रम के तहत एनीमिया में प्रतिवर्ष 03% की कमी लाने का भी लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए सरकार द्वारा 6X6X6 की रणनीति के तहत 6 आयुवर्ग, 6 प्रयास एवं 6 संस्थागत व्यवस्था की गयी है। यह रणनीति आपूर्ति श्रृंखला, मांग पैदा करने और मजबूत निगरानी पर केंद्रित करते हुए रखा गया है। उन्होंने कहा कि खून में आयरन की कमी होने से शारीरिक एवं मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। इसके लिए सभी को आयरन एवं विटामिन ‘सी’ युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। जिसमें आंवला, अमरुद एवं संतरे प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में मिलने वाले स्रोत हैं। विटामिन ‘सी’ ही शरीर में आयरन का अवशोषण करता है। इस लिहाज से इसकी मात्रा को शरीर में संतुलित करने की जरूरत है।


-इन 6 आयु वर्ग के लोगों को किया गया है लक्षित: 

06 से 59 महीने के बालक और बालिकाएं।

05 से 09 साल के युवक एवं युवतियां।

10 से 19 साल के किशोर और किशोरियां 

20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाएं एवं युवतियां (जो गर्भवती या धात्री न हो)।

गर्भवती महिलाएं।

स्तनपान कराने वाली महिलाएं।


-एनीमिया की रोकथाम के लिए निःशुल्क दी जाती है दवाएं: 


एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत सभी 06 आयु वर्ग के लोगों में एनीमिया रोकथाम की कोशिश की जा रही है। जिसमें 06 से 59 महीने के बच्चों को सप्ताह में दो बार आईएफए की 01 मिलीलीटर सीरप आशा कार्यकताओं द्वारा निःशुल्क दी जाती है। 05 से 09 आयुवर्ष के लड़के और लड़कियों को प्रत्येक सप्ताह आईएफए की एक गुलाबी गोली दी जाती है। यह दवा प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्येक बुधवार को मध्याह्न के बाद शिक्षकों के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है। साथ ही 05 से 09 वर्ष तक के वैसे बच्चे जो स्कूल नहीं जाते हैं, उन्हें आशा कार्यकर्ताओं द्वारा गृह भ्रमण के दौरान उनके घर पर आईएफए की गुलाबी गोली खिलाई जाती हैं। वहीं 10 से 19 आयुवर्ष के किशोर और किशोरियों को प्रत्येक सप्ताह आईएफए की 01 नीली गोली दी जाती है। जिसे विद्यालयों पर प्रत्येक बुधवार को भोजन के बाद शिक्षकों के माध्यम से निःशुल्क प्रदान की जाती है। 20 से 24 वर्ष के प्रजनन आयु वर्ग की महिलाओं को आईएफए की एक लाल गोली हर हफ्ते आरोग्य स्थल पर आशा के माध्यम से निःशुल्क दी जाती है। वहीं गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के चौथे महीने से प्रतिदिन खाने के लिए आईएफए की 180 गोलियां दी जाती है। यह दवा उन्हें ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन प्रदान की जाती है। साथ ही धात्री माताओं के लिए भी प्रसव के बाद आईएफए की 180 गोली दी जाती है, जिसे उन्हें प्रतिदिन खाने की सलाह दी जाती है। इस दवा का भी वितरण ग्रामीण स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस के दिन निःशुल्क ही होता है।


-सप्ताह में दो ख़ुराक दिलाएगी आपके बच्चे को खून की कमी से निज़ात:

एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के तहत 06 माह से 59 माह तक के बच्चों को सप्ताह में दो बार आईएफए (आयरन फॉलिक एसिड) सीरप देने का प्रावधान किया गया है। एक ख़ुराक में 1 मिलीलीटर यानी 8-10 बूंद होती है। सभी आशा कार्यकताओं को स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से सीरप की 50 मिलीलीटर की बोतलें आवश्यक मात्रा में दी जाती है। प्रथम दो सप्ताह में आशा स्वयं बच्चों को दवा पिलाकर मां को सिखाने का प्रयास करती एवं अनुपालन कार्ड भरना सिखाती हैं। दो सप्ताह के बाद  ख़ुराक मां द्वारा स्वयं पिलाने तथा अनुपालन कार्ड में निशान लगाने के विषय में इस कार्यक्रम के दिशा-निर्देश में विशेष बल दिया गया है।

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