*डॉ कुँअर बेचैन की प्रथम पुण्यतिथि पर शब्दाक्षर की भाव काव्यांजलि*
*-बीच सफ़र में हमको छोड़ गए हैं जो, उनकी यादों को ना बिसराया जाये*
गया राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था 'शब्दाक्षर' ने प्रसिद्ध गीतकार व ग़जलकार डॉ कुँअर बेचैन को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर स्मरण करते हुए काव्यांजलि अर्पित की। इस कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय गीतकार डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, बहुचर्चित कवयित्री डॉ कीर्ति काले, कवि मदन मोहन समर, आस्ट्रेलिया से जुड़े डॉ कुँअर बेचैन के सुपुत्र प्रगीत कुँअर व पुत्रवधू कवयित्री डॉ भावना कुँअर, शब्दाक्षर के संस्थापक-सह-राष्ट्रीय अध्यक्ष रवि प्रताप सिंह, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष दया शंकर मिश्र, राष्ट्रीय प्रवक्ता-सह-प्रसारण प्रभारी प्रो डॉ रश्मि प्रियदर्शनी एवं उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष कवि महावीर सिंह 'वीर' ने डॉ कुँअर बेचैन के साथ बिताए पलों व उनकी साहित्यिक विशिष्टताओं पर चर्चा करते हुए अपनी-अपनी भावभीनी स्वरचित पंक्तियाँ समर्पित कीं तथा डॉ बेचैन द्वारा लिखे यादगार गीतों/ग़जलों को अपने स्वर में सुनाया। कार्यक्रम का संचालन कर रहीं शब्दाक्षर दिल्ली की प्रदेश साहित्य मंत्री डॉ स्मृति कुलश्रेष्ठ ने भी सभी मंचासीन अतिथियों को डॉ कुँअर बेचैन जी की पंक्तियों द्वारा हृदयोद्गार-प्रस्तुति हेतु आमंत्रित किया। भाव काव्यांजलि का शुभारंभ डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने डॉ कुँअर बेचैन के साथ प्राप्त जीवन अनुभवों को साझा करते हुए "तुम क्या गये नखत गीतों के असमय अस्त हुए...सप्तकऋषियों में अब तुम भी नये अगत्स्य हुए।" जैसी वंदनीय पंक्तियाँ समर्पित करके किया। कवयित्री डॉ कीर्ति काले ने अपनी "बिना तुम्हारे शहर तुम्हारा, फीका-फीका लगा मुझे...बिना तुम्हारे मीठापन भी तीखा-तीखा लगा मुझे..." पंक्तियों से डॉ बेचैन को याद किया। कवि मदन मोहन समर ने कहा कि यह उनका सौभाग्य था कि उन्हें कई बार सरल, सहज व उदार व्यक्तित्व के धनी डॉ बेचैन के साथ साहित्यिक मंच व यात्राएँ साझा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। वे लम्हें बड़े मूल्यवान थे। उन्होंने अपनी कविता 'मैं तुम्हें विस्तार दूंगा आइए' सुना कर डॉ बेचैन को श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम के संयोजक कवि रविप्रताप सिंह ने "चलो प्रेम का गीत कोई गाया जाए, आहत मन को थोड़ा बहलाया जाए। बीच सफ़र में हमको छोड़ गए हैं जो, उनकी यादों को ना बिसराया जाये।।"..पंक्तियाँ पढ़ कर डॉ बेचैन के स्नेह-सानिध्य को याद किया, उन्होंने डॉ. कुँअर बेचैन जी के साथ होतीं रहीं अपनी साहित्यिक वार्ताओं का जिक्र करते हुए बताया कि उनके साथ हुई बातचीत की रिकार्डिंग अब उनके लिए एक यादगार ऐतिहासिक पूँजी है। रवि प्रताप सिंह ने डॉ बेचैन की प्रसिद्ध ग़ज़ल "पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है, पर तू जरा भी साथ दे तो और बात है.." को मनमोहक तरन्नुम में प्रस्तुत कर भावांजलि दी। वहीं कवयित्री डॉ रश्मि प्रियदर्शनी ने "निरख पीड़ा जगत की जिनके गीले नैन होते हैं। सत्य की चाशनी से सिंचित मीठे बैन होते हैं। हृदय जो जीत लेते हाथ में धर लेखनी निर्भय। उन्हीं कुछ चंद कवियों में कुँअर बेचैन होते हैं.." पंक्तियों द्वारा डॉ कुँअर बेचैन के प्रति भावसुमन अर्पित किए। डॉ रश्मि ने डॉ कुँअर बेचैन द्वारा रचित ग़ज़ल "चाँदनी चार क़दम, धूप चली मीलों तक" का सस्वर पाठ कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कवि महावीर सिंह 'वीर' ने भी डॉ बेचैन के महान जीवन पर प्रकाश डालते हुए उनके साथ साझा किये गये मंचीय अनुभवों को याद कियाहै। अपने हृदयस्पर्शी मुक्तक "सितारे, चाँद, गुल, गुलशन, घटाएँ याद करती हैं, चमन की बुलबुलें तो क्या, लताएँ याद करती हैं, धरा सूरज गगन पर्वत नदी सागर विटप तो क्या, कुँअर वो दीप थे, जिनको हवाएँ याद करती हैं..." से श्री वीर ने मंच को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
वहीं डॉ बेचैन की पुत्रवधु व मशहूर कवयित्री डॉ भावना कुँअर ने अपने व्यक्तिगत दुःखों को "तुम रूठ गये ऐसे दुनिया से, इस दुनिया में हो देखें तुमको कैसे..अनमोल खजाने हैं, तेरी यादों के मोती से दाने हैं.." जैसी भावपूर्ण पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्ति दी। डॉ कुँअर बेचैन के सुपुत्र कवि प्रगीत कुँअर की "बाहर से परदेदारी होती है, पर दिल में तस्वीर तुम्हारी होती है, अपने जीवन की सारी धन दौलत में, सुख-दुख की भी हिस्सेदारी होती है. पंक्तियों ने मंच को भाव-विभोर कर दिया। कवि दया शंकर मिश्र ने डॉ बेचैन की "क्यूँ हथेली की लकीरों से हैं आगे ऊँगलियाँ, रब ने भी किसमत से आगे आपकी मेहनत रखी है" जैसी यादगार पंक्तियाँ पढ़ीं, तो कवयित्री शिल्पी भटनागर ने डॉ बेचैन जी की रचना "ये मासूम सुबहें, ये शामें सुहानी, जरा याद रखना, यहाँ की कहानी" सुनायी। भाव काव्यांजलि का समापन संचालिका डॉ स्मृति कुलश्रेष्ठ द्वारा डॉ कुँअर बेचैन जी के गीत "बदरी बाबुल के अंगना जइयो" की सुमधुर प्रस्तुति से हुआ है।
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